निष्पक्ष पत्रकारिता को मिला सुप्रीम कोर्ट का साथ, कोर्ट ने कहा-सिर्फ सरकार की आलोचना करने से नहीं बनता केस.


नई दिल्ली। कई तरह के दबाव झेल रही और सवालों से घिरी पत्रकारिता को सुप्रीम कोर्ट का सहारा मिला है। यूपी के एक पत्रकार अभिषेक उपाध्याय पर सरकार के खिलाफ लिखने पर केस दर्ज कर लिया गया था। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसी महीने फैसला सुनाया था। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि किसी पत्रकार के खिलाफ सिर्फ इसलिए आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि वह सरकार की आलोचना करता है।
उल्लेखनीय है कि उपाध्याय पर उत्तर प्रदेश प्रशासन में नियुक्तियों में जातिगत गतिशीलता को लेकर एक्स पर एक पोस्ट लिखने के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद अभिषेक उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। जस्टिस ह्रषिकेष रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से भी जवाब मांगा था। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी को नोटिस जारी किया जाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम संरक्षण भी प्रदान किया।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत पत्रकारों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि किसी पत्रकार के खिलाफ सिर्फ इसलिए आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि वह सरकार की आलोचना करता है। कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हुए निर्देश दिया था कि उत्तर प्रदेश राज्य प्रशासन में जातिगत गतिशीलता पर उनके लेख के संबंध में उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।
एक लेख से उठा था विवाद
यह विवाद उपाध्याय के एक लेख 'यादव राज बनाम ठाकुर राज (या सिंह राज) से उठा था। इस पर उनके खिलाफ बीएनएस अधिनियम की धारा 353 (2), 197 (1) (सी), 302, 356 (2) और आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी। उपाध्याय ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के साथ-साथ अन्य स्थानों पर घटना के संबंध में दर्ज अन्य प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी।
यूपी पुलिस ने दी थी चेतावनी
इस लेख पर उन्हें ऑनलाइन धमकियां मिलने लगी थीं। इस तरह की धमकियों के खिलाफ, उन्होंने यूपी पुलिस के कार्यवाहक डीजीपी को एक ईमेल लिखा और अपने 'एक्स' हैंडल पर पोस्ट किया। यूपी पुलिस के आधिकारिक हैंडल ने उन्हें 'एक्स' पर जवाब देते हुए लिखा-आपको चेतावनी दी जाती है और सूचित किया जाता है कि अफवाहें या गलत सूचना न फैलाएं। आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
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